Wednesday, 18 May 2011

यह क्रिकेट का जूनून नहीं देशप्रेम का जज्बा भी है यारो !!!!

आलेख : योगेश किसलय

क्रिकेट को हिकारत की दृष्टि से देखने वाले और भारत की विश्व विजय के जूनून में क्रिकेट के प्रति पागलपन समझने वाले लोगो को एक बात याद दिलाना चाहूँगा . कारगिल युद्ध के दौरान जैसे ही किसी शहीद का शव उसके शहर में आता था . लोग बिना बुलाये पागलो की तरह जुलूस में शामिल हो जाते थे . रांची के शहीद नागेश्वर महतो झारखण्ड के पहले शहीद थे . उनकी शवयात्रा में एअरपोर्ट से लेकर कांके तक जो जनसैलाब उमड़ा था और लोगो के आँखों से आंसुओं की धार निकली थी उसके गवाह आज भी उस स्थिति को रोंगटे खड़े कर देने वाली भावना बताते नहीं थकते . दो अप्रैल को रांची और देश भर की सडको पर जो जन सैलाब लोगो ने देखा यह उस भीड़ से कम नहीं था . क्रिकेट से नफरत करने वाले इसे लोगो की क्रिकेट के प्रति पागलपन से तुलना करते हैं लेकिन रात ग्यारह बजे सडको पर जो जज्बा दिखा वह देशप्रेम का उन्माद था . घर घर से लोग पैदल बाइक और गाडियों से दनदनाते सडको पर दौड़ पड़े . लगा कौन किससे अधिक खुश है इसका इजहार करने की होड़ लगी है रात के ग्यारह बजे ही सुबह हो गयी और बूढ़े बच्चे औरत मर्द गरीब अमीर सभी ने जश्न में हिस्सा लिया . ना तो बच्चो को गाडियों से टकराने का डर था ना लडकियों को छेड़े जाने का भय . एक ही जज्बा तारी था , कि देश ने विश्व विजय कर लिया है और वे उसी देश के सौभाग्यशाली बाशिंदे हैं .
कुछ अति आदर्शवादी और खेल से नफरत करने वाले लेकिन औचित्यहीन लोगो ने घर की छतो पर ही इस कथित " पागल पन " का मजाक उड़ाना चाहा लेकिन लोगो के जोश जज्बे और जूनून के सामने खुद को अकेला पाया . भारत में अगर क्रिकेट को धर्म कहा जाता है तो इसी धर्म ने हर वर्ग को एक धागे में पिरोया है . लोग क्रिकेट के अलावा खेलो की वकालत करते हैं करना चाहिए लेकिन क्रिकेट को केवल खेल नहीं बल्कि राष्ट्रधर्म से जोड़कर देखे तो शायद उन्हें देशप्रेम का जज्बा भी दिखाई पड़े क्रिकेट को केवल जूनून के रूप में नहीं बल्कि देशप्रेम के रूप में ले तो शायद सोच सार्थक होगी. आप सोच सकते हैं कि जिस गुजरात को मुस्लमान विरोधी माना जाता है वही के तीन मुस्लिम खिलाडी को देश और गुजरात के नागरिक सर पर बिठाते हैं यहाँ ना तो धर्म की बंदिश है ना जाति का टोटा ना क्षेत्रीयता का सवाल . पूरा देश एक है एक इकाई है जब जहीर खान रन अप पर दौड़ते हैं तो पंडितो के आशीर्वाद बरसते हैं और जब सचिन शतक की ओर होते हैं तो मजारो तक पर दुआए मांगी जाती है कौन सा संगठन सरकार या संस्था बिना बोले ,बिना प्रवचन - उपदेश के ऐसा धर्म निरपेक्ष समाज बना सकता है और अब तो किसी एक विधा (क्रिकेट ) का अपना देश चैम्पियन है गर्व करने का मौका मिला है इसमें दखलंदाजी ना हो . विघ्नसंतोषियो को इश्वर शांति दे ... आमीन !!!

( लेखक इंडिया टीवी के झारखण्ड प्रमुख हैं )

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