आलेख : योगेश किसलय
प्रभात खबर के १८ मार्च के अंक के पहले पेज की तीन खबरों ने पूरे देश और झारखण्ड के चरित्र को अक्स दिखा दिया . सबसे ऊपर चार तस्वीरे हैं जो बताती है कि रांची के बीचोबीच बना एक तालाब छः साल में गायब हो गया . दूसरी खबर का शीर्षक है " हाई कोर्ट पर गरमाई विधान सभा " . और तीसरी खबर का शीर्षक है " सरकार बचाने के लिए 10 -10 करोड़ में खरीदे सांसद "
आम लोगो में एक छवि बन गयी है कि सरकार और इसमें बैठे शासक ही नहीं इनकी नकेल कसने वाले विपक्षी भी एक अलग जिम्मेवारी का पालन कर रहे हैं और वह जिम्मेवारी है देश को लूट खसोट का बाजार बना देना और जिसके हाथ जो लगा उसे बटोरकर अपना कुनबा बचाए रखना . सच तो यह है कि इस देश को चला रही है अदालत . चाहे सुप्रीम कोर्ट हो या झारखण्ड का हाई कोर्ट . रांची में चीफ जस्टिस अपने अमला के साथ निकलते हैं और अतिक्रमण तोडवाते हैं, अवैध पानी बिजली के कनेक्शन वालो की लाइन कटवाते हैं और यह भी देखते हैं कि सड़के सही बन रही या नहीं . आखिर ऐसे हालत क्यों उपजे कि अदालत सड़क पर आ गया . क्या अदालत का यह काम है . लेकिन हमारे भाग्य विधाताओ ने अपने संकल्प बदल डाले जिम्मेवारी से च्युत हो गए . देश का ढांचा ऐसा नहीं है कि विधायिका नंगा नाच करे तो सेना देश की कमान संभाल ले जो आम तौर पर अडोस पड़ोस के देश मे होता है ,लेकिन बड़े सलीके से और लोकतांत्रिक तरीके से अदालत ने यह जिम्मेवारी ली है आम जानता खुश है कि रांची में चलने के लिए सड़के मिलने लगी है पानी की सप्लाई ठीक हो रही है भ्रष्टाचारी जेल में जा रहे हैं . इसके लिए यहाँ की दस साल की सरकार और उसके कारिंदे जिम्मेवार नहीं है सिर्फ अदालत जिम्मेवार है . इसपर तुर्रा यह कि विधानसभा में विधायक- मंत्री पगलाए हुए हैं कि उनके अधिकार का हनन हो रहा है . मजे की बात यह है जितने मंत्री और विधायको ने अदालती कार्रवाई के खिलाफ आवाज उठाई है उनकी सहानुभूति उनलोगों के साथ है जो अवैध काम में मशगूल है , जिन्होंने बिना परमिशन के बिल्डिंगे और घर बना लिए , बिजली और पानी की चोरी कर रहे हैं, सरकार को चूना लगा रहे है . इन राजनैतिक विधाताओं को अचानक जनहित की सुध आयी है लेकिन किसके पक्ष में ---उनके जो कानून तोड़ते हैं , यानि कानून सिर्फ राजनेताओ की रखैल है . झारखंड सहित पूरे देश के राजनेताओ की छवि ही नहीं हकीकत क्या है यह इसी खबर से जाहिर होता है कि सांसद 10- 10 करोड़ में बिके . यह चरित्र बहुत पुराना है जे एम् एम् रिश्वतखोरी काण्ड ने झारखण्ड की छवि बना दी है . झारखण्ड से बाहर जे एम् एम् को इसलिए नहीं जानते कि उसका कितना जनाधार है बल्कि इसलिए जानते हैं कि इसके सांसदों ने बिकने की एक परंपरा डाली . हम ऐसे नेताओ पर क्यों भरोसा करे ?
झारखण्ड विधान सभा में जो विधवा प्रलाप हुआ है वह इसलिए कि क़ानून का पालन कराने के लिए अदालत सामने आगया . आखिर यह इन माननीयो के अधिकारों में खलल जो है .उनकी निरंकुशता पर लगाम लगाने की कवायद जो है . आज माननीय विधायको को जिनका पानी कटने का मलाल है उन्होंने कर्बला चौक पर गायब हुए तालाब की फिकर है . प्रभात खबर के उस सुधी पाठक शशि सागर ( जिन्होंने कर्बला चौक के तालाब का फोटो भेजा है ) से आग्रह है कि सन 2000 के बाद के गायब हुए उन सभी तालाबो की जानकरी दे जो झारखण्ड सरकार की नपुंसकता की वजह से गायब हो गए . और जब सबकुछ हाथ से निकल गया तो पानी के लिए प्रलाप कर रहे हैं
पूरा देश यह देख रहा है कि हर छोटा बड़ा काम अदालती फैसलों का मोहताज हो गया है . वजह है हमारे राजनेताओ में न तो क्षमता है न हिम्मत न नैतिकता . कुर्सी बची रहे ,विधायक बने रहे ,सांसद का टिकट मिलता रहे इसके लिए हर कुकर्म करने को तैयार हैं राजनेता . झारखण्ड से लेकर दिल्ली तक यही आलम है . कानून का राज बना रहे इसके लिए झारखण्ड के चीफ जस्टिस रांची की सडको पर टहलते हैं तो सुप्रीम कोर्ट के जज मुख्य सतर्कता आयुक्त की बहाली की जाँच करते है , वही कालाधन मामले में दो कौड़ी के तस्कर हसन अली की गिरफ्तारी के लिए सुप्रीम कोर्ट के जज को आगे आकर निर्देश देना पड़ता है . साफ़ है पूरे देश में सरकार नहीं अदालत का राज चल रहा है ऐसे में इन कापुरुष राजनेताओ का क्या काम ?. इनपर इतना खर्च क्यों बर्दाश्त करे जनता ?. अगर इन्हें लूट खसोट ही करना है तो जनता का वोट क्यों .? इनके पाप में जनता की भागीदारी क्यों ?
हम लोकतंत्र का लबादा ओढ़े हुए हैं . हमें यह खुशफहमी है कि अपना लोकतंत्र विश्व का सबसे बढ़िया और बड़ा लोकतंत्र है . हम शर्म से नहीं कहते हैं कि अपना लोकतंत्र सबसे भ्रष्ट और बेतरतीब लोकतंत्र है लेकिन हमारे ( राजनैतिक ) विधाताओ को शर्म ही नहीं आती
( लेखक इंडिया टीवी के झारखण्ड प्रमुख हैं )
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